इंडिया में हर डिनॉमिनेशन के करेंसी नोट जारी करने और उसको वापस लेने का अधिकार अब तक रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया का ही रहा है। वैसे अब जारी होने वाले 500 और 2000 रुपये के नए करेंसी नोट पर भी बीआई के गवर्नर के ही दस्तखत हैं लेकिन 1000 और 500 के पुराने नोट बैन किए जाने की घोषणा सरकार का मुखिया ने की है।
स्वतंत्र भारत के इतिहास में ऐसा (डीमॉनेटाइजेशन) एक बार पहले भी हो चुका है, फिर भी इस बार की कहानी कुछ वजहों से बड़ी दिलचस्प है। मैं इसको दिलचस्प इसलिए कह रहा हूं कि पिछली बार के उलट इस बार सरकार को आरबीआई गवर्नर का सपोर्ट है।
अंग्रेजी के न्यूज पोर्टल क्वार्ट्ज इंडिया (http://qz.com/) के मुताबिक, 1978 में तत्कालीन पीएम मोरारजी देसाई ने भी (मौजूदा पीएम नरेंद्र मोदी की तरह ही) डीमॉनेटाइजेशन वाला कदम उठाया था और 1000, 5000 और 10,000 के करेंसी नोट को स्क्रैप कर दिया था। इसके लिए मोरारजी सरकार ने 16 जनवरी 1978 को हाई डिनॉमिनेशन बैंक नोट्स (डीमोनेटाइजेशन) एक्ट पास किया था।
लेकिन आरबीआई के तत्कालीन गवर्नर आई जी पटेल गठबंधन वाली तत्कालीन जनता सरकार के इस कदम के खिलाफ थे। उनका आरोप था कि सरकार सिस्टम से ब्लैक मनी खत्म करने के बजाय पूर्ववर्ती सरकार को पंगु बनाने की कोशिश कर रही है। देखें: Click Here
इस छोटी सी कहानी के बाद हम यह कह सकते हैं कि एक बार फिर सरकार आरबीआई का काम खुद करना चाहती है या फिर उसने उसके अधिकारों का धीरे-धीरे डायवेस्टमेंट करना शुरू कर दिया है। कहा जा रहा है कि इस मामले में मोदी को मौजूदा आरबीआई गवर्नर ऊर्जित पटेल का सपोर्ट है लेकिन पटेल तो महज एक सिग्नेचरी के तौर पर यूज किए गए हैं।
तो ऐसे में आरबीआई की स्वायत्तता का क्या? मतलब आरबीआई गवर्नर ऐसा रबर स्टांप हो गया है जिसकी तरफ से हर करेंसी नोट पर लिखा रहेगा कि मैं धारक को फलां रकम अदा करने का वचन देता हूं।
आरबीआई के पास अब तक जितने काम थे उनको कुछ कमेटियां और सेल बनाकर बांटने का सुझाव सरकार को दिया गया है। यह सुझाव बैंकिंग सुधार के लिए बनी ऊर्जित पटेल की कमेटी ने दिया है। इस कमेटी के सुझावों में आरबीआई का कामकाज सहज बनाने के लिए सरकार की फाइनेंसिंग जरूरतों पूरी करने और मॉनेटरी पॉलिसी कमेटी का काम अलग करना शामिल है।
आने वाले दिनों में सरकार की फाइनेंसिंग जरूरतें पूरी करने के लिए बैंकिंग रेगुलेटर से अलग पीडीएमए (Public Debt Management Agency) बनाया जाएगा लेकिन वह पहले एक सेल (The Public Debt Management Cell) बनेगी जो आरबीअाई काम अपने हाथ में धीरे धीरे लेगी और बाद में एजेंसी बन जाएगी। देखें: Click Here
अब आरबीआई के मौजूदा काम की बात करते हैं। आरबीआई की वेबसाइट के मुताबिक भारत में करेंसी नोट मैनेज करने का काम उसका है। नए करेंसी नोट कितनी रकम का होगा, यह तय करने की जिम्मेदारी सरकार की होती है लेकिन यह काम भी वह रिजर्व बैंक की सलाह से करती है।
सिक्योरिटी फीचर्स और डिजाइनिंग में आरबीआई सरकार का सहयोग लेता है।नए नोट कितने जारी किए जाने चाहिए, यह भी आरबीआई ही तय करता है। बैंकिंग रेगुलेटर को इस तरह के मैनेजमेंट का काम रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया एक्ट 1934 के तहत मिला हुआ है।
जहां तक करंसी इश्यूएंस में सरकार की भूमिका का सवाल है तो उसको सिर्फ सिक्के जारी करने का अधिकार है। यह अधिकार उसको इंडियन कॉइनेज एक्ट 1906 के तहत मिला हुआ है।