The Intuitive, Beautiful and gentle girl of my Office – Anuradha
The Intuitive, Beautiful and gentle girl of my Office – Anuradha, Written by Satyendra Siddhartha.
मैं तुम्हें स्वभाव से चंचल कहूं, नहीं ऐसा भी नहीं है। मै तुम्हें स्वतंत्र व्यक्तित्व या आत्मनिर्भर कहूं तो ये किताबी अलंकार हो जायेंगे। हाँ, परंतु इतना जरूर है की तुम आम लड़कियों की तरह नहीं हो। इसलिए मैंने शीर्षक में ही सहज और सरल शब्द का इस्तेमाल किया है जो तुम्हारे व्यकतित्व का शायद संपूर्ण परिभाषा है। हलाकि इसमें केवल मेरा दृश्टिकोण निहित है। इससे भिन्न भी हो सकता है या इसके अलावा भी कुछ हो सकता है जहाँ तक मेरी सोच की किरणे उसे समझने और फलीभूत करने में असफल रही हो। वैसे जहां तक मैंने तुम्हें इस अल्पसमय में समझा है उसको मैं अपने शब्दों के माधयम से यहाँ पिरो रहा हूँ। इतना आसान नहीं होता किसी व्यक्ति के संपूर्ण आभा को उकेरित करना। फिर भी तुम्हारे जीवन के इस खास पल में मेरी छोटी सी कोशिश है जिसे तुम उपहार स्वरुप समझ सकती हो।
सबसे पहले जन्मदिन अनंत शुभकामनायें। ईश्वर तुम्हें यश, सुख, समृद्धि एवं दीर्घ आयु प्रदान करें। सूर्य की तरह चमकते रहो और खिले पुष्प की तरह तुम्हारी मुस्कराहट सर्वदा बरक़रार रहे। तुम्हें अपने माता -पिता का अनंत लाड़-प्यार मिले यही शुभकामना है। तुम अपने जीवन के सर्वश्रेष्ठ उचाईयों को प्राप्त करो, ऐसी कामना है।
हम दोनों एक ही दफ्तर में काम करते हैं। तुम मेरे सहकर्मी हो। पहली दफ़ा मैंने तुम्हें देखा तो तुम मुझे सामान्य सा नहीं लगी। सच पूछो तो तुम्हारा गुमसुम रहना, कम बातें करना मुझे खली और लगा की ये लड़की बहुत घमंडी है। हालांकि इस निर्णय पर मैं यूँ ही एकदम से नहीं पहुँच गया था। थोड़ा वक़्त दिया लेकिन बाद में पता चला की वो नाकाफी था यह समझने के लिए। मैं धीरे-धीरे गलत साबित हुआ। वैसे इसमें मैं अपनी गलती ज्यादा नहीं मानता हूँ क्योंकि यह इंसानी फितरत है । हम जल्दी अपना पक्ष बना लेते है और उस पर अमल शुरू भी कर देते हैं। हो सकता है यह वाक्या भी उसी का परिणाम हो। ख़ैर, अब मूल बात पर आते हैं। सच पूछो तो तुम्हारे बारें में मेरा नजरिया पूर्णरूप से तब बदला जब तुमने विश्व की श्रेष्ठतम धार्मिक ग्रन्थ गीता उपहार स्वरुप भेंट की। और वह मेरे जीवन के सबसे सुखद पल था। वैसे तो दैनिक जीवन में उपहार स्वरुप कई चीज़ों का हुमलोग आदान प्रदान करते है पर मेरे हिसाब से पुस्तक उपहार में मिलना अपने आप में बड़ी बात है। इस अमूल्य उपहार के लिए मैं तुम्हारा कृतज्ञ हूँ। क्योंकि तमाम खूबसूरत प्रक्रियाओं में से एक होता किताब भेंट स्वरुप पाना। यह एक प्रकार की श्रृंगार की पराकाष्ठा है किसी के व्यक्तित्व को समझना और उसके अनुरूप आचरण करना। यह तुम्हारे साफगोई विचार का प्रतीक है।
इसके बाद कई जानने को मिली। जो की बहुत सुखद है। तुम कृष्ण के अनुयायी हो और कृष्ण तुम्हें सबसे प्यारे हैं। खाली समय में मैं तुमसे जब बात करता हूँ तो तुम अतिउत्साहित होकर कृष्ण और गीता के बारे में बताती हो। यह अपने आप में अनूठा है कि अपने भाग- दौड़ भरी दिनचर्या से समय निकालकर तुम तीन बार गीता पढ़ चुकी हो। इस धर्मग्रन्थ कि महता इससे समझी जा सकती है जब 1893 ई में स्वामी विवेकानंद को अमेरिकी धर्म संसद में बोलने का मौका मिला तो उन्होंने अपनी बात पवित्र गीता के माध्यम से ही शुरू की।
मुझे इस बात का गर्व है कि मैं एक ऐसे धर्म से हूं, जिसने महान पारसी धर्म के लोगों को शरण दी और अभी भी उन्हें पाल-पोस रहा है। भाइयो, मैं आपको एक श्लोक की कुछ पंक्तियां सुनाना चाहूंगा जिसे मैंने बचपन से स्मरण किया और दोहराया है और जो रोज करोड़ों लोगों द्वारा हर दिन दोहराया जाता है: जिस तरह अलग-अलग स्त्रोतों से निकली विभिन्न नदियां अंत में समुद में जाकर मिलती हैं, उसी तरह मनुष्य अपनी इच्छा के अनुरूप अलग-अलग मार्ग चुनता है। वे देखने में भले ही सीधे या टेढ़े-मेढ़े लगें, पर सभी भगवान तक ही जाते हैं।वर्तमान सम्मेलन जोकि आज तक की सबसे पवित्र सभाओं में से है, गीता में बताए गए इस सिद्धांत का प्रमाण है: जो भी मुझ तक आता है, चाहे वह कैसा भी हो, मैं उस तक पहुंचता हूं। लोग चाहे कोई भी रास्ता चुनें, आखिर में मुझ तक ही पहुंचते हैं।